Wednesday, May 27, 2020

वियतनाम और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध


साउथ ईस्ट एशिया का छोटा-सा खूबसूरत और शांत देश है-वियतनाम। वियतनाम और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध काफी पुराने हैं। यहां चौथी से लेकर 13वीं शताब्दी तक की बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के जुड़ी कलाकृतियां पहले भी मिलती रही हैं। हाल में वियतनाम में बलुआ पत्थर का विशाल शिवलिंग खुदाई में मिला है। इस शिवलिंग के मिलने की जानकारी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर तस्वीरों के साथ शेयर की हैं।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को गत बुधवार एक संरक्षण परियोजना की खुदाई के दौरान 9वीं शताब्दी का शिवलिंग मिला है। यह शिवलिंग बलुआ पत्थर का है और इसे किसी तरह की हानि नहीं पहुंची है। यह शिवलिंग वियतनाम के माई सोन मंदिर परिसर की खुदाई के दौरान एएसआई को मिला है।इस खोज पर एएसआई की प्रशंसा करते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा कि 9वीं शताब्दी का अखंड बलुआ पत्थर शिवलिंग वियतनाम के मई सन मंदिर परिसर में जारी संरक्षण परियोजना की नवीनतम खोज है। एएसआई की टीम को बधाई ।’विदेश मंत्री ने खुदाई की तस्वीरें ट्वीट कर 2011 में इस अभयारण्य की अपनी यात्रा को भी याद किया। अपने एक अन्य ट्विट में उन्होंने इस खोज को भारत की विकास साझेदारी का एक महान सांस्कृतिक उदाहरण बताया। बता दें कि इस मंदिर परिसर से पहले भी कई मूर्तियां और कलाकृतियां मिली हैं, जिनमें भगवान राम और सीता की शादी की कलाकृति और नक्काशीदार शिवलिंग प्रमुख हैं।वियतनाम स्थित ‘माई सन मंदिर’ पर हिन्दू प्रभाव है और यहां कृष्ण, विष्णु तथा शिव की मूर्तियां हैं। यह परित्यक्त और आंशिक रूप से ध्वस्त हिन्दू मंदिर हैं। इनका निर्माण चंपा के राजाओं ने चौथी से 14वीं शताब्दी के बीच कराया था। मंदिर परिसर मध्य वियतनाम के क्वांग नाम प्रांत के दुय फू गांव के पास स्थित है। मंदिर परिसर करीब दो किलोमीटर लंबी-चौड़ी घाटी में स्थित है जो दो पहाड़ों से घिरा हुआ है।वियतनाम का चंपा क्षेत्र प्राचीन काल में हिंदू राज्य और हिंदू धर्म का गढ़ था। यहां स्थानीय समुदाय चम का शासन दूसरी शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक रहा था। चम समुदाय में ज्यादातर लोग हिंदू थे, लेकिन आगे चलकर इस समुदाय के कई लोगों ने बौद्ध और इस्लाम धर्म को अपना लिया। वियतनाम वॉर के दौरान एक सप्ताह में ही अमेरिका की बमबारी ने इस परिसर को बड़े पैमाने पर नुकासन पहुंचा था। इस दौरान यह मंदिर परिसर लगभग तबाह हो गया था।

Monday, May 25, 2020

श्री # रामकिंकर बैज को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए। वह एक बहुत प्रसिद्ध मूर्तिकार और चित्रकार थे, आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के अग्रणी और प्रासंगिक आधुनिकतावाद के प्रमुख व्यक्ति थे।


Santhal Family (1938)By : Ramkinkar Baij
 
Mill call By : Ramkinkar Baij



Sujata
# शांति निकेतन में # सृजनहार # रामकिंकरबैज द्वारा बुद्ध की रचना। बुद्ध की सीधी रेखाएँ बहुत प्रमुख हैं!

रबिन्द्रनाथ टैगोर का रबिन्द्रनाथ टैगोर का चित्रण: #Bronze


Yaksha & Yakshini
(Two sculptures at RBI gate, New Delhi)
By : Ramkinkar Baij
'Binodini'
द्वारा: रामकिंकर बैज
(1948, वाटर कलर ऑन पेपर, 17X27.3 सेमी, वर्तमान में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, नई दिल्ली में)

Sunday, May 24, 2020

अयोध्या और पुरातत्व

अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि परिसर के समतलीकरण का कार्य चल रहा है. इस दौरान वहां 5 फिट आकार की नक्काशी युक्त शिवलिंग की आकृति, कई मूर्तियां , काफी संख्या में पुरावशेष, देवी - देवताओं की खंडित मूर्तियाँ, पुष्प कलश, आमलक, दोरजाम्ब आदि कलाकृतियां, मेहराब पत्थर, 7 ब्लैक टच स्टोन के स्तम्भ एवं 6 रेड सैंड स्टोन के स्तम्भ प्राप्त हुए हैं.
आर्केलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की खुदाई में यह बहुत पहले ही प्रमाणित हो गया था कि भगवान राम का जन्म वहीं पर हुआ था और भगवान श्री राम के मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर आक्रान्ताओं ने ढांचा बनाया था. मगर वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों ने शुरुआती दौर में ही गलत जानकारी किताबों में प्रकाशित की. एक षड्यंत्र के तहत देश और विदेश में
भारत की गलत तस्वीर प्रस्तुत की गई. उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद श्री राम मंदिर के विषय में झूठ फैलाने वालों की जुबान पहले ही बंद हो चुकी है.
मंदिर निर्माण के लिए हो रहे समतलीकरण में मिलीं पुरातात्विक मूर्तियों ने एक बार फिर उन रोमिला थापर एवं इरफ़ान हबीब सरीखे वामपंथी इतिहासकारों को झूठा साबित कर दिया है.
वामपंथी इतिहासकार अप्रासंगिक हो चुके हैं
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चम्पत राय की देखरेख में यह समतलीकरण का कार्य चल रहा है. चम्पत राय कहते हैं “ श्री राम मंदिर को लेकर करीब 490 वर्ष तक झगड़ा चला. मुसलमानों की तरफ से पहले यह कहा गया था कि अगर वर्ष 1528 के पहले वहां पर मंदिर साबित हो जाता है तो वो लोग अपना दावा छोड़ देंगे. वर्ष 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया. मुसलमानों को आगे आना चाहिए था मगर उन लोगों ने ऐसा नहीं किया. वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में अपीलें दाखिल हुईं. काफी समय तक वहां पर सुनवाई रूकी रही और जब सुनवाई शुरू हुई तो उसे टलवा दिया गया. हमने पूरी उम्मीद लगा रखी थी कि सितम्बर 2017 के पहले सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आयेगा. वातावरण बन चुका था. सुनवाई की प्रक्रिया जैसे ही तेज हुई. दो अधिवक्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि इस मामले की सुनवाई, लोकसभा चुनाव 2019 के बाद की जाय. उन लोगों को डर था कि अगर सुनवाई शुरू हो गई तो इसका फैसला लोकसभा चुनाव के पहले ही आ जाएगा. इसलिए उन लोगों ने उस सुनवाई को टलवा दिया. अब समतलीकरण में मंदिर होने के प्रमाण निकल रहे हैं तो मैं यही कहना चाहूंगा कि वामपंथी इतिहासकार अब अप्रासंगिक हो चुके हैं. इन लोगों ने मिलकर जो झूठ फैलाया था उसका उत्तर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने दे दिया है."
उस जमाने में अल्मोड़ा से काली कसौटी के पत्थर लाये गए थे
इतिहासकार प्रो. मक्खन लाल बताते हैं कि “ सन 1990 में जब समतलीकरण हुआ था उस समय भी मूर्तियां और अवशेष मिले थे. वह सभी साक्ष्य सर्वोच्च न्यायालय में रखे गए थे. बाबरी ढांचा जब ढहा था. उस समय भी मंदिर के साक्ष्य मिले थे. उन साक्ष्यों को भी सर्वोच्च न्यायालय में रखा गया था. वामपंथी इतिहासकार चीखते – चिल्लाते रहे मगर उन लोगों के पक्ष को सर्वोच्च न्यायालय ने झूठ माना. 2.77 एकड़ जमीन ही नहीं बल्कि 67 एकड़ भूमि का क्षेत्र श्री राम मंदिर का परिसर है. सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदुओं के इस पक्ष को सही ठहराया. भारतवर्ष में या अन्य कहीं पर, जो बड़े मंदिर हैं जैसे कि मीनाक्षी टेंपल या फिर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, इन सभी मंदिरों में एक मुख्य मंदिर होता है और उस मंदिर परिसर में दीवार के साथ लगे हुए छोटे-छोटे अन्य मंदिर होते हैं. इसी तरीके से अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर था. इस मंदिर परिसर में अन्य देवी – देवताओं की जो मूर्तियां लगी हुईं थीं. वो अब समतलीकरण के दौरान निकल रहीं हैं. इसीलिये लगातार यह मांग की जाती रही थी कि केवल 2.77 एकड़ जमीन नहीं बल्कि पूरा 67 एकड़ भूमि हिन्दुओं को मिलनी चाहिए. वर्तमान समय में हिन्दुओं की तरफ से 67 एकड़ भूमि पर भव्य राम मंदिर बनाने का कार्य शुरू हो चुका है. खुदाई में जो काली कसौटी के पत्थर निकल रहे हैं. यह पत्थर अयोध्या में नहीं पाए जाते. इन पत्थरों को उस जमाने में अल्मोड़ा से ला कर तराशा गया था.
उस समय किसी की हिम्मत नहीं थी ऐसा कहने की -- के.के मोहम्मद


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक (नॉर्थ) के.के. मोहम्मद कहते हैं कि “मैंने तो वर्ष 1990 में ही यह बता दिया था कि जहां पर राम लला विराजमान हैं वहीं पर भगवान राम का मंदिर था. उस समय यह कहने की किसी की हिम्मत भी नहीं थी मगर फिर भी मैंने इस सचाई को सबके सामने रखा था. वर्ष 1990 में जब समतलीकरण का कार्य चल रहा था. उस समय भी भूमि के अन्दर राम मंदिर होने के साक्ष्य मिले थे. वर्तमान समय में भी समतलीकरण के दौरान राम मंदिर होने के प्रमाण मिल रहे हैं. जब राम लला वहां पर विराजमान थे तब वहां पर ठीक से खुदाई करना संभव नहीं था. अब उस परिसर में खुदाई के दौरान और भी कई साक्ष्य निकल सकते हैं मगर यहां पर एक बात आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की खुदाई वैज्ञानिक ढंग से होनी चाहिए. अवैज्ञानिक तरीके से खुदाई या समतलीकरण करने से भूमि के अन्दर दबी हुई पुरातात्विक मूर्तियां को नुकसान पहुंच सकता है. इन सभी पुरातात्विक अवशेषों को एक संग्रहालय में रखा जाना चाहिए ताकि लोग आकर देखें कि प्राचीन काल में भगवान राम का कितना भव्य मंदिर था.



#फ़तेहपुर_सीकरी में ''जोधाबाई महल'' से निकल कर सामने की ओर ही सुनहरा मकान और #पंचमहल'' है। पंचमहल के बारे में कहा जाता है कि शाम के वक्त बादशाह यहाँ अपनी बेगमों के साथ हवाखोरी करता था। 176 भव्य नक़्क़ाशीदार खम्भों पर पंचमहल खड़ा है।
पंचमहल का निर्माण मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा करवाया गया था। यह इमारत फ़तेहपुर सीकरी क़िले की सबसे ऊँची इमारत है। पिरामिड आकार में बने पंचमहल को 'हवामहल' भी कहा जाता है। इसकी पहली मंज़िल के खम्भों पर शेष मंजिलों का सम्पूर्ण भार है। पंचमहल या हवामहल मरियम-उज़्-ज़मानी के सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बनवाया गया था। यहीं से अकबर की मुस्लिम बेगमें ईद का चाँद देखती थीं।
फ़तेहपुर सीकरी में 'जोधाबाई महल' से निकल कर सामने की ओर ही सुनहरा मकान और 'पंचमहल' है। पंचमहल के बारे में कहा जाता है कि शाम के वक्त बादशाह यहाँ अपनी बेगमों के साथ हवाखोरी करता था। 176 भव्य नक़्क़ाशीदार खम्भों पर पंचमहल खड़ा है। प्रत्येक खम्भे की नक़्क़ाशी अलग किस्म की है। सबसे नीचे की मंज़िल पर 84 और सब से ऊपर की मंज़िल पर 4 खम्भे हैं। पंचमहल इमारत नालन्दा में निर्मित बौद्ध विहारों से प्रेरित लगती है। नीचे से ऊपर की ओर जाने पर मंजिलें क्रमशः छोटी होती गई हैं। महल के खम्बों पर फूल-पत्तियाँ, रुद्राक्ष के दानों से सुन्दर सजावट की गई है। मुग़ल बादशाह अकबर के इस निर्माण कार्य में बौद्ध विहारों एवं हिन्दू धर्म का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ता है।
पंचमहल के समीप ही मुग़ल राजकुमारियों का मदरसा है। मरियम-उज़्-ज़मानी का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था। इसके बनवाने तथा सजाने में अकबर ने अपने रानी की हिन्दू भावनाओं का विशेष ध्यान रखा था। भवन के अंदर आंगन में तुलसी के बिरवे का थांवला है और सामने दालान में एक मंदिर के चिह्न हैं। दीवारों में मूर्तियों के लिए आले बने हैं। कहीं-कहीं दीवारों पर कृष्णलीला के चित्र हैं, जो बहुत मद्धिम पड़ गए हैं। मंदिर के घंटों के चिह्न पत्थरों पर अंकित हैं। इस तीन मंज़िले घर के ऊपर के कमरों को ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन महल कहा जाता था। ग्रीष्मकालीन महल में पत्थर की बारीक जालियों में से ठंडी हवा छन-छन कर आती थी।

Saturday, May 23, 2020

महारानी गायत्री देवी को उनकी जयंती पर याद करते हुए। यूरोप में शिक्षित, महारानी अपनी युवावस्था में एक शानदार सुंदरता थीं और बड़ी होकर एक फैशन आइकन बन गईं, वोग मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया की दस सबसे खूबसूरत महिलाओं में से एक का नाम दिया।