Tuesday, August 18, 2020

विश्व फोटोग्राफी दिवस 19 अगस्त

 ऑस्ट्रेलियाई फोटोग्राफर कोर्स्के आरा ने साल 2009 में विश्व फोटोग्राफी दिवस योजना की शुरुआत की. विश्व फोटोग्राफी दिवस पर 19 अगस्त 2010 को पहले वैश्विक ऑनलाइन गैलरी का आयोजन किया गया था. यह दिवस विश्वभर में फोटोग्राफरों के एकजुट करने के उद्देश्य से मनाया जाता है.


1839 में सर्वप्रथम तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूंढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई।फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 7 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह प्रोसेस रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 1939 को फ्री घोषित किया। यही कारण है कि 19 अगस्त को मनाया जाता है।

विश्व की पहली सेल्फी

अमेरिकन फोटोग्राफर रॉबर्ट कॉर्नेलियस ने साल 1839 के शुरूआती महीने में एक सेल्फी ली थी. रॉबर्ट कॉर्नेलियस ने अपने कैमरे को सेट किया और लेंस कैंप को हटाकर और फ्रेम में चलकर फोटो ली. इसे अब सेल्फी कहा जाता है.

इस संसार में प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को जन्म के साथ भी एक कैमरा दिया है जिससे वह संसार की प्रत्येक वस्तु की छवि अपने दिमाग में अंकित करता है। वह कैमरा है उसकी आंख। इस दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक प्राणी एक फोटोग्राफर है।
वैज्ञानिक तरक्की के साथ-साथ मनुष्य ने अपने साधन बढ़ाना प्रारंभ किया और अनेक आविष्कारों के साथ ही साथ कृत्रिम लैंस का भी आविष्कार हुआ। समय के साथ आगे बढ़ते हुए उसने इस लैंस से प्राप्त छवि को स्थायी रूप से सहेजने का प्रयास किया। इसी प्रयास की सफलता वाले दिन को अब हम के रूप में मनाते हैं।

फोटोग्राफी का आविष्कार जहां संसार को एक-दूसरे के करीब लाया, वहीं एक-दूसरे को जानने, उनकी संस्कृति को समझने तथा इतिहास को समृद्ध बनाने में भी उसने बहुत बड़ी मदद की है। आज हमें संसार के किसी दूरस्थ कोने में स्थित द्वीप के जनजीवन की सचित्र जानकारी बड़ी आसानी से प्राप्त होती है, तो इसमें फोटोग्रोफी के योगदान को कम नहीं किया जा सकता।

वैज्ञानिक तथा तकनीकी सफलता के साथ-साथ फोटोग्राफी ने भी आज बहुत तरक्की की है। आज व्यक्ति के पास ऐसे-ऐसे साधन मौजूद हैं जिसमें सिर्फ बटन दबाने की देर है और मिनटों में अच्छी से अच्छी तस्वीर उसके हाथों में होती है। किंतु सिर्फ अच्छे साधन ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने की ग्यारंटी दे सकते हैं, तो फिर मानव दिमाग का उपयोग क्यों करता?

तकनीक चाहे जैसी तरक्की करे, उसके पीछे कहीं न कहीं दिमाग ही काम करता है। यही फर्क मानव को अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ बनाता है। फोटोग्राफी में भी अच्छा दिमाग ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने के लिए जरूरी है।

हमें आंखों से दिखाई देने वाले दृश्य को कैमरे की मदद से एक फ्रेम में बांधना, प्रकाश व छाया, कैमरे की स्थिति, ठीक एक्सपोजर तथा उचित विषय का चुनाव ही एक अच्छे फोटो को प्राप्त करने की पहली शर्त होती है। यही कारण है कि आज सभी के घरों में एक कैमरा होने के बाद भी अच्छे फोटोग्राफर गिनती के हैं।
च्छा फोटो अच्छा क्यों होता है- इसी सूत्र का ज्ञान किसी भी फोटोग्राफर को सामान्य से विशिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त होता है। प्रख्यात चित्रकार प्रभु जोशी का कहना है कि 'हमें फ्रेम में क्या लेना है, इससे ज्यादा इस बात का ज्ञान जरूरी है कि हमें क्या-क्या छोड़ना है।'

भारत के संभवतः सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफर रघुराय के शब्दों में चित्र खींचने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं करता। मैं उसे उसके वास्तविक रूप में अचानक कैंडिड रूप में ही लेना पसंद करता हूं। पर असल चित्र तकनीकी रूप में कितना ही अच्छा क्यों न हो, वह तब तक सर्वमान्य नहीं हो सकता जब तक उसमें विचार नहीं है। एक अच्छी पेंटिंग या अच्छा चित्र वही है, जो मानवीय संवेदना को झकझोर दे। कहा भी जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर है।

आज जब उपभोक्तावाद अपनी चरम सीमा पर है, तब ग्राहक को उत्पादन की ओर खींचने में फोटोग्राफी का भी बहुत बड़ा योगदान है। विज्ञापन को आकर्षक बनाने के लिए फोटोग्राफर जो सार्थक प्रयत्न कर रहा है, उसे हम अपने दैनिक जीवन में अच्छी तरह अनुभव कर सकते हैं।

इसी प्रयास में फोटोग्राफी को आजीविका के रूप अपनाने वाले बहुत बड़े लोगों की संख्या खड़ी हो चुकी है। यह लोग न सिर्फ फोटोग्राफी से लाखों कमा रहे हैं बल्कि इस काम में कलात्मक तथा गुणात्मक उत्तमता का समावेश कर 'जॉब सेटिस्फेक्शन' की अनुभूति भी प्राप्त कर रहे हैं। अपने आविष्कार के लगभग 100 वर्ष लंबे सफर में फोटोग्राफी ने कई आयाम देखे हैं।

Saturday, June 6, 2020

भारत में विश्व धरोहर स्थल


भारत में 38 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Sites in India) हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा 2018 के रूप में मान्यता प्राप्त है। भारत के ये यूनेस्को धरोहर स्थल सांस्कृतिक या प्राकृतिक विरासत के महत्व के स्थान हैं। भारत के पास अब यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध 38 विश्व धरोहर स्थल हैं और यह भारत को विश्व विरासत स्थलों की संख्या के मामले में विश्व के शीर्ष देशों में से एक बनाता है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की पहचान उन स्थानों के रूप में करता है जो दुनिया के सभी लोगों से संबंधित हैं, चाहे वे जिस क्षेत्र में स्थित हों। इसका मतलब है कि भारत के इन विश्व धरोहर स्थलों को दुनिया में अत्यधिक सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व माना जाता है।

  • भारत में जुलाई 2018 में मुंबई के विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको एनसेम्बल के सम्मिलित होने के बाद कुल 38 (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक एवं 1 मिश्रित) विश्व दर्शनीय स्थल हैं|
  • भारत से पहली बार दो स्थल आगरा किला एवं अजंता गुफाओं को 1983 में विश्व दर्शनीय स्थलों में शामिल किया गया|
  • 2016 में, निम्न तीन स्थलों को विश्व दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल किया गया-
    (i) नालंदा महावीर विश्वविद्यालय, बिहार
    (ii) कैपिटील बिल्डिंग काम्प्लेक्स–चंडीगढ़
    (iii) कंचनजंघा राष्ट्रीय पार्क, सिक्किम
  • जुलाई 2017 में, विश्व दर्शनीय स्थलों की सूची में भारत का प्रथम शहर अहमदाबाद है|
  • जुलाई 2018 में, मुंबई के विक्टोरियन और आर्ट डेको एनसेम्बल्स को भारत की 37 वीं विश्व धरोहर स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया।
  • ऐतिहासिक शहर बाकू, अज़रबैजान में 30 जून -10 जुलाई से यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 43 वें सत्र में, मान्यता प्राप्त करने के लिए अहमदाबाद के बाद जयपुर शहर को भारत की 37 वीं विश्व धरोहर स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया।
  • भारत में सिर्फ एक मिश्रित स्थल कंचनजंघा राष्ट्रीय पार्क, सिक्किम है|
  • वर्तमान में, देश की 42 साइटें विश्व धरोहर की अंतिम सूची में हैं।
  • संस्कृति मंत्रालय यूनेस्को को नामांकन के लिए हर साल एक संपत्ति की सिफारिश करता है।

भारत के इन 38 यूनेस्को विरासत स्थलों में से 30 सांस्कृतिक स्थल हैं, 7 प्राकृतिक स्थल हैं और 1 एक मिश्रित स्थल है। भारत में सांस्कृतिक स्थल दीप्ति से चिह्नित हैं। यहाँ सभी 38 साइटों की एक सूची दी गई है।

विक्टोरियन गोथिक आर्ट डेको



2019 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की कुल संख्या 37 से बढ़कर 38 हो गई है यानी एक और साइट यूनेस्को द्वारा जोड़ दी गई है।



दक्षिण मुंबई में स्थित विक्टोरियन गोथिक आर्ट डेको के भवनों को मियामी के बाद दुनिया की सबसे बड़ी भवन श्रंखला में शामिल किया जाता है। बांबे हाईकोर्ट का भवन विक्टोरियन गोथिक शैली का बेहतरीन उदाहरण है। ये भवन में विशाल मैदान के आसपास स्थित हैं इनका निर्माण 19वीं सदी में हुआ था।  बांबे हाईकोर्ट के भवन का निर्माण 1871 में आरंभ हुआ और 1878 में पूरा हुआ। तब 16.44 लाख में बने इस भवन के वास्तुविद जेए फुलेर थे।

1930 से 1950 के बीच बनी आर्ट डेको इमारतें
मैदान के पश्चिमी इलाके में स्थित आर्ट डेको भवनों का निर्माण 1930 से 1950 के बीच हुआ है। मुंबई की आर्ट डेको बिल्डिंग में आवासीय भवन, व्यवसायिक दफ्तर, अस्पताल, मूवी थियेटर आदि आते हैं। इसी क्षेत्र में रीगल और इरोस सिनेमा घर हैं। इरोज सिनेमा का भवन आर्ट डेको शैली का बेहतरी उदाहरण है। इस सिनेमाघर में 1,204 लोगों की बैठने की क्षमता है।  साल 1938 बने इस भवन के वास्तुविद शोरबाजी भेदवार थे। 


घुमावदार सीढ़ियां और खूबसूरत बरामदे
पीले बैंगनी और नीले रंगों में रंगी आर्ट डेको बिल्डिंग मुंबई के मरीन ड्राइव पर तीन किलोमीटर के दायरे मे हैं। ज्यादातर भवन अधिकतम पांच मंजिल के हैं। इन भवनों में घुमावदार सीढ़ियां, खूबसूरत बरामदे और संगमरमर की फर्श इसकी विशेषताएं हैं। 

Friday, June 5, 2020

बोधिसत्व खसारपना लोकेश्वरा

देर से पाल कला में कल्पना और आइकोोग्राफिक विस्तार की बढ़ती जटिलता पूर्वी भारत में एसोटेरिक बौद्ध धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाती है। खसारपना लोकेश्वरा, करुणा का प्रचुर लोकप्रिय बोधिसत्व, एवलोकितेश्वरा का गूढ़ रूप, हिंदू तत्वों के बौद्ध धर्म में अवशोषण द्वारा बनाया गया था और पाल कला में अक्सर दिखाई देता है।

इस स्टैला में, युवा, बेज्वेल्ड आकृति एक डबल-कमल सिंहासन पर बैठी है, जो कमल के फूल और देवता के चार मानक परिचारिकाओं से घिरा हुआ है: देवी तारा और भृकुटी को बोधिसत्व के घुटनों के बाईं और दाईं ओर; और, आधार पर, सुई-नाक वाले सुसीमुखा, जो अनुग्रह के अमृत को बाईं ओर, और दाहिने मोर्चे पर भयभीत हयाग्रीव को प्रसन्न करते हैं। इसके अलावा, राजसी सुधांकुमारा, जो अपनी बायीं भुजा के नीचे एक पुस्तक रखती है, को आधार के अग्र भाग में दिखाया गया है, जबकि दाता दंपति की दो छोटी आकृतियाँ हयाग्रीव के पीछे घुटने टेकती हुई दिखाई गई हैं। स्टैला के ऊपरी हिस्से को नुकसान होने के कारण, केवल पांच जिना बुद्धों, बौद्ध ब्रह्मांड के शासकों के आंकड़ों से बनी हुई है। सुरुचिपूर्ण अनुपात, सज्जित कमर, बड़े पैमाने पर नक्काशीदार सतह की सजावट, जटिल आइकनोग्राफी, और बोधिसत्व की लगभग स्त्री कविता परिपक्व पाला शैली की पहचान है।

  • Title: Bodhisattva Khasarpana Lokeshvara
  • Date Created: c. 11th–12th century
  • Location: India, Bengal
  • Physical Dimensions: 49 3/16 x 31 5/8 x 14 1/8 in. (124.9 x 80.3 x 35.9 cm)
  • Provenance: (Ben Heller, Inc., New York); purchased by Kimbell Art Foundation, Fort Worth, 1970.
  • Rights: Kimbell Art Museum, Fort Worth, Texas
  • External Link: www.kimbellart.org
  • Medium: Gray schist
  • Kamakura period (1185-1333): Pala period (750–1174)

#सांगानेरी_प्रिंटिंग_तकनीक

16वीं और 17वीं शताब्दी के बीच विकसित हुई। यह तकनीक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए प्रमुख निर्यात वस्तुओं में से एक बन गई थी सांगानेरी प्रिंट में उपयोग किए जाने वाले डिजाइन और पैटर्न फूल में सूरजमुखी, गुलाब शामिल हैं। फूलों के अलावा, विभिन्न देवताओं, फलों और लोक दृश्यों को दर्शाने वाले डिजाइन भी लोकप्रिय हैं। वर्क और पैटर्न सांगानेर के सांस्कृतिक वनस्पतियों और जीवों को प्रमुखता से चित्रित करते हैं। यह राजस्थान की सबसे ज्यादा बिकने वाली, विशेष वस्तुओं में से एक है।

सिक्की

सिक्की काम में एक विशेष प्रकार की घास के साथ सुंदर सजावटी वस्तुओं और खिलौने बनाना शामिल है जिसे सिक्की के रूप में जाना जाता है। यह कला आमतौर पर उन महिलाओं द्वारा प्रचलित की जाती है जो नदी के किनारे खरपतवार का उपयोग करती हैं ताकि हाथी, पक्षी, सांप और कछुए जैसी विभिन्न आकृतियाँ बनाने के लिए घास की सिलाई करके विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जा सके। एक बार घास को एक विशेष आकार में सिले जाने के बाद, महिलाएं अपनी दृश्य अपील को बढ़ाने के लिए खिलौनों को चमकदार रंगों से रंगती हैं। बिहार में मधुबनी, दरभंगा और सीतामढ़ी जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कला का प्रदर्शन किया जाता है।

बगरु प्रिंट


बगरु प्रिंट : 470 पहले शुरू हुअा बगरू प्रिंट
फैब्रिक के मामले में जयपुर की अपनी एक पहचान है। बगरू प्रिंट 470 साल पहले केवल बस्ती के लिए बनाया जाता था। अब ये इंटरनेशनल मार्केट में अपनी जगह बना चुका है। सेलिब्रेटीज, पाॅलिटिशियन के लिए यह एक स्टेटस सिंबल बन चुका है। जानकाराें के मुताबिक अाज से 470 साल ठाकुराें ने जयपुर की कुछ दूरी पर बगरू गांव काे बसाया। इस गांव में खासताैर पर फैब्रिक बनाने में अाैर प्रिंट्स में अच्छा काम करने वाले कलाकाराें काे बसाया गया था। ये कलाकार अपने नाम के साथ छीपा का इस्तेमाल करते हैं। छी का मलतब रंगाई अाैर पा का मतलब सूरज में सुखाना हाेता है। बगरू प्रिंट्स पहले महिलाअाें के लिए चार कलर में बनाए जाते थे। महिलाअाें के लिए बनने वाले घाघरे में छाेटी बूटी काे प्रिंट किया जाता था। राेचक बात ताे ये है कि पुराने समय में जाति स्टेटस सिंबल के हिसाब से बगरू प्रिंट्स काे कलर में रंगा जाता था।