बगरु प्रिंट : 470 पहले शुरू हुअा बगरू प्रिंट
फैब्रिक के मामले में जयपुर की अपनी एक पहचान है। बगरू प्रिंट 470 साल पहले केवल बस्ती के लिए बनाया जाता था। अब ये इंटरनेशनल मार्केट में अपनी जगह बना चुका है। सेलिब्रेटीज, पाॅलिटिशियन के लिए यह एक स्टेटस सिंबल बन चुका है। जानकाराें के मुताबिक अाज से 470 साल ठाकुराें ने जयपुर की कुछ दूरी पर बगरू गांव काे बसाया। इस गांव में खासताैर पर फैब्रिक बनाने में अाैर प्रिंट्स में अच्छा काम करने वाले कलाकाराें काे बसाया गया था। ये कलाकार अपने नाम के साथ छीपा का इस्तेमाल करते हैं। छी का मलतब रंगाई अाैर पा का मतलब सूरज में सुखाना हाेता है। बगरू प्रिंट्स पहले महिलाअाें के लिए चार कलर में बनाए जाते थे। महिलाअाें के लिए बनने वाले घाघरे में छाेटी बूटी काे प्रिंट किया जाता था। राेचक बात ताे ये है कि पुराने समय में जाति स्टेटस सिंबल के हिसाब से बगरू प्रिंट्स काे कलर में रंगा जाता था।
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